ड्रग्स चख भी मत लेना

ड्रग्स का कारोबार बड़ेबड़े तस्कर अंधाधुंध मुनाफे के लिए कर रहे हैं और देश का युवावर्ग, महिलाओं से ले कर बस्तियों के बच्चे तक नशे में धुत हैं, उन्हें रोकने वाला कोई नहीं. 


साल 1971  में देवानंद अभिनीत और निर्देशित फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' सुपर हिट इसलिए भी हुई थी कि उस में युवाओं के लिए एक सार्थक संदेश था कि ड्रग्स के नशे में फंस कर जिंदगी का सुनहरा वक्त बरबाद मत करो. फिल्म में देवानंद की नशेड़ी बहन जसबीर का रोल जीनत अमान ने इतनी शिद्दत से निभाया था कि लोग उन के अभिनय के कायल हो गए थे. फिल्म का गाना 'दम मारो दम मिट जाए गम...' आज के नशेडि़यों का भी पसंदीदा गाना है. 


फिल्म में जसप्रीत एक मध्यवर्गीय युवती है जो मांबाप के अलगाव के चलते डिप्रैशन में आ कर हिप्पियों की संगत में फंस कर नेपाल चली जाती है. सालों बाद उस का भाई प्रशांत उसे ढूंढ़ता हुआ काठमांडू पहुंचता है और नशेडि़यों के चंगुल से छुड़ाने के लिए तरहतरह के उपाय करता है.


लगभग 50 साल बाद भी यह फिल्म प्रासंगिक बनी हुई है, जिस के गवाह हैं ड्रग्स की गिरफ्त में तेजी से आते युवा, जिन्हें सुधारने और नसीहत देने की जरूरत महसूस होने लगी है. 5 दशकों में देश बहुत बदला है लेकिन युवाओं में बढ़ती ड्रग्स की समस्या ज्यों की त्यों है. दरअसल, ड्रग्स का कारोबार बेहद गिरोहबद्ध तरीके से होता है.


एक नई जसप्रीत - शिवानी मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की गिनती पिछड़े जिलों में भले ही होती हो लेकिन ड्रग्स के मामले में यह महानगरों से उन्नीस नहीं. 19 वर्षीया छात्रा शिवानी शर्मा शिवपुरी के नवाब साहब रोड की निवासी थी. उस की कहानी 'हरे रामा हरे कृष्णा' की जसप्रीत से काफी मिलतीजुलती है. शिवानी के पिता की मौत 3 महीने पहले ही हुई थी. उस की मां सालों पहले घर छोड़ कर चली गई थीं. अपने चाचाचाची के साथ रह रही शिवानी नशेडि़यों के चंगुल में जो फंसी तो फिर जिंदा इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ पाई. शिवानी की लाश शहर की कृष्णपुरम कालोनी के एक चबूतरे पर 6 जुलाई को मिली थी.


पुलिस की तफ्तीश में आशंका जताई गई कि उस की हत्या की गई होगी लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि शिवानी की मौत स्मैक की ओवरडोज से हुई थी. पुलिस की कहानी से इतर शिवानी की चाची की मानें तो वह कुछ दिनों से स्मैक का नशा करने लगी थी, जिस की शिकायत उन्होंने पुलिस में भी की थी लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की. हादसे के 2 दिन पहले ही जूली, रूबी और चिक्की नाम की 3 युवतियों सहित 2 लड़के उसे अपने साथ ले गए थे. फिर शिवानी वापस नहीं आई. शिवानी की बुजुर्ग दादी रोते हुए बताती हैं कि वह अपने हाथ में नशे का इंजैक्शन लगाने लगी थी.


हल्ला मचने पर पुलिस हरकत में आई, तो यह खुलासा हुआ कि पूरी शिवपुरी में ड्रग माफिया सक्रिय है, जिस में पुलिस वालों की मिलीभगत है. आधा दर्जन पुलिसकर्मी भी इस माफिया से मिले हुए थे जिन्हें सस्पैंड कर दिया गया. हद तो उस वक्त हो गई जब शिवपुरी पुलिस का ही एक कांस्टेबल आशीष शर्मा का वीडियो वायरल हुआ जिस में वह नशे का इंजैक्शन लेता हुआ दिखाई दे रहा है. इसी दौरान शिवपुरी के ही कुछ समाजसेवियों ने नशे के आदी एक नाबालिग बच्चे को पकड़ा था जिस ने बताया था कि स्मैक का इंजैक्शन 250 रुपए में मिलता है और इसे लगाने के लिए वह मैडिकल स्टोर से सीरिंज खरीदता था.


शिवपुरी का यह मामला एक बानगीभर है. दुनियाभर में ड्रग्स का कारोबार बहुत तेजी से फलफूल रहा है और ड्रग माफिया के निशाने पर अधिकतर युवा ही हैं. हर तीसरी हिंदी फिल्म में दिखाया जाता है कि विलेन ड्रग्स का कारोबार करता है जिस की खेप समुद्री या हवाई रास्ते से आती है और ऐसे आती है कि पुलिस और कस्टम वालों को हवा भी नहीं लगती, यदि लगती भी है तो वे अंजान बने रह कर इस कारोबार को फलनेफूलने देते हैं, एवज में उन्हें तगड़ा नजराना जो मिलता है.


यत्रतत्र सर्वत्र कैसे युवा ड्रग्स के जाल में फंसते हैं और उन का अंजाम क्या होता है, इस के पहले यह जान लेना निहायत जरूरी है कि इन दिनों दुनियाभर में ड्रग्स का कारोबार बेहद सुनियोजित और संगठित तरीके से हो रहा है. आएदिन देशभर में ड्रग्स के कारोबारी पकड़े जाते हैं. लेकिन यह भी सच है कि पकड़ी हमेशा छोटीमोटी मछलियां जाती हैं, मगरमच्छों तक तो पुलिस कभी पहुंच ही नहीं पाती. यानी पत्ते तोड़े जाते हैं लेकिन इस नशीले व्यापार की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं.


शुरुआत देश के उत्तरी इलाके जम्मूकश्मीर से करें जहां हाल ही में धारा 370 हटाई गई है लेकिन, वहां आतंकवाद से भी बड़ी समस्या ड्रग्स की है. बीती 1 अगस्त को यह उजागर हुआ था कि कश्मीर में ड्रग्स धड़ल्ले से पिज्जाबर्गर की तरह मिलता है और आंकड़े बताते हैं कि बीते 5 सालों में ड्रग्स की लत के शिकार युवाओं की तादाद 10 गुना तक बढ़ी है. जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के श्री महाराज हरिसिंह अस्पताल (एसएमएचएस) के डाक्टरों के अनुसार ड्रग्स के नशे के आदी एक 15 वर्षीय लड़के ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि कश्मीर में ड्रग्स खुलेआम मिलती है.


8वीं जमात में पढ़ने वाले अहमद (बदला नाम) के मुताबिक कश्मीर में हेरोइन की कीमत 1,800 रुपए प्रतिग्राम है. यानी 'उड़ता पंजाब' की तर्ज पर अब कश्मीर भी उड़ने लगा है. एसएमएचएस के ड्रग डी-एडिक्शन सैंटर के रजिस्ट्रार डाक्टर सलीम यूसुफ के अनुसार तो कश्मीर में 10 साल के बच्चे भी ड्रग्स की लत के शिकार हैं. कश्मीर में 12 फीसदी महिलाएं भी ड्रग्स का नशा करती हैं. इस का जिम्मेदार सलीम साइको सोशल स्ट्रैस को ठहराते हैं. लेकिन उन की नजर में बढ़ती बेरोजगारी भी दूसरी वजह है. इस साल 1 अप्रैल से ले कर 1 जून तक कई नशेड़ी एसएमएचएस में इलाज के लिए भरती हुए थे. साल 2019 में पुलिस ने एक छापे में जम्मू से 41 किलो अफगानी हेरोइन जब्त की थी. जिस की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 250 करोड़ रुपए है.


ड्रग्स की यह तस्करी पाकिस्तान के बौर्डर से होती है. हालात कितने भयावह हैं, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2008 से मई 2018 तक जम्मूकश्मीर के 4 नशामुक्ति केंद्रों में 21,871 मरीज इलाज के लिए भरती हुए थे. ड्रग्स के कारोबार और खपत के लिए कुख्यात पंजाब और हरियाणा के बाद राजधानी दिल्ली के हालात तो और भी चिंताजनक हैं. 31 जुलाई को राज्यसभा में कांग्रेसी सांसद सुब्बारामी रेडी ने ड्रग्स का मुद्दा उठाते बताया था कि दिल्ली में तकरीबन 25 हजार स्कूली बच्चे ड्रग्स की लत के शिकार हो गए हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है.


बात सच है कि दिल्ली में झुग्गीझोंपडि़यों से ले कर पौश इलाकों तक के युवा ड्रग्स का नशा करते हैं. इन पौश इलाकों में रोजाना रेव पार्टियां होती हैं. बीती 15 जुलाई को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक हाईप्रोफाइल ड्रग सप्लायर करण टिवोती से लाखों रुपए की ड्रग्स बरामद की थी. कारण दिल्ली और एनसीआर की हाईप्रोफाइल पार्टियों को ड्रग्स सप्लाई करता था. 


इन्हीं दिनों में पश्चिम बंगाल, गुजरात, और महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश में भी ड्रग रैकेट्स का भंडाफोड़ हुआ था, जिन में एक सप्ताह में ही तकरीबन 2,000 करोड़ रुपए कीमत की ड्रग्स बरामद हुई थी. हर एक की अलग कहानी तेजी से ड्रग्स के शिकार होते युवाओं की कहानियां भी अलगअलग हैं. एक अंदाजे के मुताबिक अकेले भोपाल में 2 लाख से भी ज्यादा युवा ड्रग ऐडिक्ट हैं. इन में से अधिकतर कालेज के छात्रछात्राएं हैं.



उन में से कुछ को भरोसे में ले कर बात की गई तो उन्होंने बताया- कहानी (एक)  23 वर्षीय स्नेहा (बदला नाम) गुना से भोपाल पढ़ने आई है और भोपाल के त्रिलंगा इलाके में बतौर पीजी रहती है. स्नेहा के पिता सरकारी अधिकारी हैं और हर महीने उसे लगभग 10 हजार रुपए महीने भेजते हैं. जिन में से 5 हजार रुपए मकान के किराए और खानेपीने में खर्च होते हैं. इंजीनियरिंग के तीसरे साल में पढ़ रही स्नेहा ने ड्रग्स के बारे में सुना जरूर था लेकिन कभी इन्हें देखा नहीं था, फिर सेवन का तो सवाल ही नहीं उठता था.


स्नेहा की दोस्ती अपने ही अपार्टमैंट में रहने वाली मुग्धा (बदला नाम) से हुई तो जल्द ही दोनों में गहरी छनने लगी. मुग्धा कभीकभार ड्रग्स लेती थी और यह बात उस ने स्नेहा से छिपाई नहीं थी. एक शाम स्नेहा मुग्धा के कहने पर गुलमोहर इलाके स्थित एक हुक्का लाउंज में चली गई. वहां का नजारा उसे अजीब लगा. वहां रंगबिरंगी लाइटों के साथ धीमा लेकिन उत्तेजित संगीत बज रहा था. लगभग 30-40 युवा अपनेआप में मशगूल कश खींच रहे थे, इन में 15 लड़कियां थीं. वहां कोई खास शोरशराबा या होहल्ला नहीं था. कई युवा ग्रुप बना कर बैठे थे. स्नेहा को यह देख थोड़ी हैरानी हुर्ह कि लड़केलड़कियां हुक्के के कश के अलावा कोई पाउडर भी चख और सूंघ रहे थे और नशे में सैक्सी हरकतें भी कर रहे थे. उसे असहज होते देख मुग्धा ने बताया कि यही तो हम यूथ की जरूरत है जहां कोई बंदिश नहीं, बस मौजमस्ती है. और यही इस उम्र का तकाजा है. बाद में तो शादी कर नौकरी और गृहस्थी के झंझट में बंध जाना है. फिर ये दिन ख्वाब बन कर रह जाएंगे.


2-3 घंटेउस बार में गुजार कर वह वापस आई तो मुग्धा काफी बहकीबहकी और दार्शनिकों की सी बातें कर रही थी कि जीवन नश्वर है, जवानी बारबार नहीं आती, इसे जीभर कर एंजौय करना चाहिए. अच्छी बात यह रही कि मुग्धा ने उसे नशे के लिए बाध्य नहीं किया था. हां, पहली बार स्नेहा ने सिगरेट के एकदो कश लिए थे जो चौकलेट फ्लेवर की थी. रूम पर आ कर उसे बार के उन्मुक्त दृश्य और मुग्धा की बातें याद आती रहीं कि ड्रग्स का अपना एक अलग मजा है जिसे एक बार चखने में कोई हर्ज नहीं, फिर तो जिंदगी में यह मौका मिलना नहीं है और यह कोई गुनाह नहीं बल्कि उम्र और वक्त की मांग है. आजकल हर कोई इस का लुत्फ लेता है. इस से एनर्जी भी मिलती है और अपने अलग वजूद का एहसास भी होता है.


अगले सप्ताह वह फिर मुग्धा के साथ गई और इस बार हुक्के के कश भी लिए. कश लेते ही वह मानो एक दूसरी दुनिया में पहुंच गई. नख से ले कर शिख तक एक अजीब सा करंट शरीर में दौड़ गया. फिर यह हर रोज का सिलसिला हो गया. शुरू में उस का खर्च मुग्धा उठाती थी. अब उलटा होने लगा था. मुग्धा का खर्च स्नेहा उठाती थी, जो एक बार में 2 हजार रुपए के लगभग बैठता था. स्नेहा झूठ बोल कर घर से ज्यादा पैसे मंगाने लगी. यहां तक तो बात ठीकठाक रही. लेकिन एक दिन मुग्धा के एक दोस्त अभिषेक (बदला नाम) के कहने पर उस ने चुटकीभर एक सफेद पाउडर जीभ पर रख लिया तो मानो जन्नत जमीन पर आ गई. अभिषेक ने इतनाभर कहा था. इस हुक्कासिगरेट में कुछ नहीं रखा रियल एंजौय करना है तो इसे एक बार चख कर देखो.


स्नेहा की कहानी बहुत लंबी है जिस का सार यह है कि वह अब पार्टटाइम कौलगर्ल बन चुकी है और हर 15 दिन में होशंगाबाद रोड स्थित एक फार्महाउस जाती है जहां नशे का सारा सामान खासतौर से उस सफेद पाउडर की 10 ग्राम के लगभग की एक पुडि़या मुफ्त मिलती है. एवज में उसे अभिषेक और उस के 3-4 रईस दोस्तों का बिस्तर गर्म करना पड़ता है जो अब उसे हर्ज की बात नहीं लगती. यह उस की मजबूरी हो गई है. अब स्नेहा उस पाउडर के बगैर रह नहीं पाती. लेकिन उस की सेहत गिर रही है. उसे कभी भी डिप्रैशन हो जाता है, नींद नहीं आती, डाइजैशन खराब हो चला है. और सब से अहम बात, वह अपनी ही निगाह में गिर चुकी है. मम्मीपापा से वह पहले की तरह आंख मिला कर आत्मविश्वास से बात नहीं कर पाती. जैसेतैसे पढ़ कर पास हो जाती है.


स्नेहा के दोस्तों का दायरा काफी बढ़ गया है और उस की कई नई फ्रैंड्स भी उस फार्महाउस में जाती हैं, मौजमस्ती करती हैं, सैक्स करती हैं, नशा करती हैं और दूसरे दिन दोपहर को रूम पर वापस आ कर प्रतिज्ञा भी करती हैं कि अब नहीं जाएंगी. लेकिन नशे की लत उन की यह प्रतिज्ञा हर 15 दिन में कच्चे धागे की तरह तोड़ देती है.


कहानी (दो) 24 वर्षीय प्रबल (बदला हुआ नाम) भी इंजीनियरिंग का छात्र है. फर्स्ट ईयर से ही वह होस्टल में रह रहा है. सिगरेट तो वह कालेज में दाखिले के साथ ही पीने लगा था लेकिन अब कोकीन और हेरोइन भी लेने लगा है. स्नेहा की तरह वह भी अपने एक दोस्त के जरिए इस लत का शिकार हुआ था. पैसे कम पड़ने लगे तो सप्लायर ने उसे रास्ता सुझाया कि मुंबई जाओ और यह माल बताई गई जगह पर पहुंचा दो. आनेजाने के खर्चे के अलावा 5 हजार रुपए और महीनेभर की पुडि़या मुफ्त मिलेगी. प्रस्ताव सुन कर वह डर गया कि पुलिस ने पकड़ लिया तो... जवाब मिला कि संभल कर रहोगे तो ऐसा होगा नहीं. अगर पुडि़या चाहिए तो यह तो करना ही पड़ेगा.


ऐसा नहीं है कि प्रबल ने इस लत से छुटकारा पाने की कोशिश न की हो. लेकिन मनोचिकित्सक की सलाह पर वह ज्यादा दिन तक अमल नहीं कर पाया और दवाइयां भी वक्त पर नहीं खा पाया. एक नशामुक्ति केंद्र भी वह गया, कसरत की, बताए गए निर्देशों का पालन किया लेकिन 3-4 महीने बाद ही फिर तलब लगी तो वह वापस उसी दुनिया में पहुंच गया. अब हर 2-3 महीने में वह पुणे, नागपुर, जलगांव, नासिक और मुंबई दिया गया माल पहुंचाता है और 4-6 महीने के लिए बेफिक्र हो जाता है.


प्रबल की परेशानी यह है कि अगर कभी पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो फिर वह कहीं का नहीं रह जाएगा. आएदिन अखबारों में छापे की खबरें पढ़ कर वह और परेशान हो जाता है और अपने भीतर की घबराहट से बचने के लिए ज्यादा नशा करने लगता है. वह समझ रहा है कि वह ड्रग माफिया का बहुत छोटा प्यादा बन चुका है, लेकिन इस के अलावा उसे कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा कि इस चक्रव्यूह से कैसे निकले.


लगता नहीं कि बिना किसी हादसे के वह बाहर निकल पाएगा और निकल भी पाया तो उस का भविष्य क्या होगा, यह कहना मुश्किल है. लेकिन इसी दौरान उसे इस रहस्यमयी कारोबार के कुछ गुर और रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग्स के नाम रट गए हैं, मसलन हेरोइन, कोकीन, एलएसडी, क्रिस्टल मेथ, प्वाइंट यानी गांजे वाली सिगरेट और चरस सहित कुछ नए नाम जैसे मारिजुआना, फेंटेनी वगैरहवगैरह. नुकसान ही नुकसान ये ड्रग्स युवाओं को हर लिहाज से खोखला कर रहे हैं जिन के सेवन से 2-4 घंटे का स्वर्ग तो भोगा जा सकता है लेकिन बाकी जिंदगी नर्क बन कर रह जाती है.


तमाम ड्रग्स सीधे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालते हैं, जिन के चलते नशेड़ी वर्तमान से कट कर ख्वाबोंखयालों की एक काल्पनिक दुनिया में पहुंच जाता है जहां कोई चिंता, तनाव या परेशानी नहीं होती, होता है तो एक सुख जो आभासी होता है.


ड्रग्स सेवन के शुरुआती कुछ दिन तो शरीर और दिमाग को होने वाले नुकसानों का पता नहीं चलता लेकिन 4-6 महीने बाद ही इन के दुष्परिणाम दिखना शुरू हो जाते हैं. सिरदर्द, डिप्रैशन, चक्कर आना, भूख न लगना, हाजमा गड़बड़ाना, कमजोरी और थकान इन में प्रमुख हैं. इन कमजोरियों से बचने के लिए इलाज कराने के बाद युवा ड्रग्स की खुराक बढ़ा देते हैं. यही एडिक्शन का आरंभ और अंत है. यहीं से वे आर्थिक रूप से भी खोखले होना शुरू हो जाते हैं और पैसों के लिए छोटेबड़े जुर्म करने से नहीं हिचकिचाते.


चेन स्नैचिंग, बाइक और मोबाइल चोरी, छोटीमोटी स्मगलिंग इन में खास है जिन में कई युवा पकड़े जाते हैं और अपना कैरियर व भविष्य चौपट कर बैठते हैं. लड़कियों की तो और भी दुर्गति होती है. उन्हें आसानी से देहव्यापार में ड्रग्स के सौदागर धकेल देते हैं. स्नेहा और मुग्धा जैसी लाखों युवतियां पार्टटाइम कौलगर्ल बन जाती हैं. इन में फिर न आत्मविश्वास रह जाता है और न ही स्वाभिमान. छोटेबड़े नेता, कारोबारी, ऐयाश अफसर और रईसजादे इन युवतियों को भोगते हैं और इन्हें इस दलदल में बनाए रखने के लिए पैसे और ड्रग्स देते व दिलवाते हैं. और जब वे भार बनने लगती हैं तो उन्हें शिवानी शर्मा की तरह कीड़ेमकोड़े की तरह मार दिया जाता है.


चखना मत


इस गोरखधंधे के खात्मे के लिए जिस इच्छाशक्ति की जरूरत है वह न तो नेताओं में है, न अफसरों में. उलटे, वे तो अपनी हवस और पैसों के लिए इस काले कारोबार को और बढ़ावा देते हैं. बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के खेल विभाग के एक आदतन नशेड़ी छात्र के मुताबिक, ड्रग्स सेवन की लत एक वाक्य 'एक बार चख कर तो देख' से शुरू होती है और जो फिर कभी खत्म नहीं होती. खत्म कुछ युवा हो जाते हैं जो घबरा कर या डिप्रैशन के चलते खुदकुशी कर लेते हैं. इस खिलाड़ी छात्र का कहना है कि इस चक्कर में कभी कोई युवा भूल कर भी न पड़े. इसलिए उसे एक बार चखने की जिद या आग्रह से बच कर रहना चाहिए.


देशभर के होस्टल कैंपस में यह कारोबार फैला है जिस के कभी खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है. कई बार युवा साथियों को जानबूझ कर इन जानलेवा नशे की तरफ खींचते हैं. इस के लिए उन्हें लालच दिया जाता है और दबाव भी बनाया जाता है. फिर ड्रग आकाओं के इशारे पर नाचने के अलावा इन के पास कोई और रास्ता नहीं रह जाता. युवतियां नशे के कारोबार की सौफ्ट टारगेट होती हैं जिन्हें ड्रग्स की लत लगा कर बड़े होटलों, फार्महाउसों और बंगलों तक में भेजा जाता है.


ये लड़कियां जिंदगीभर पछताती रहती हैं कि काश, पहली बार ड्रग चखी न होती, तो आज उन की यह हालत न होती. ड्रग्स और उस के कारोबारियों के खिलाफ हर कहीं मुहिम चलती है लेकिन जल्द ही दम तोड़ देती है क्योंकि ड्रग माफियाओं का शिकंजा इतना कसा हुआ है कि उस पर इन अभियानों का कोई असर नहीं होता. 


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